आज इस लेख के माध्यम से हम जानेंगे MSP और APMC क्या है आइए जानते हैं! जिसको लेकर किसान आंदोलित है!
एम एस पी (MSP) को हिंदी में न्यूनतम समर्थन मूल्य कहा जाता है, पिछले लगभग 2 महीने से अन्नदाता सड़क पर है! इस बात को लेकर कि उसकी जो फसल है, उसका उचित दाम नहीं मिल रहा है!
किसान चाहता है कि उसकी फसल को मिनिमम समर्थन मूल्य यानी MSP पर खरीदा जाए, लेकिन सरकार जो MSP को तय करती है! उसमें कुछ ही फसल है जैसे -गेहू धान इनको ही न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदा जाता है! इसके अलावा जो भी किसान उत्पादन करता है, उसे एमएसपी से नीचे जाकर बेची जाती है सरकार ने लगभग 23 फसलों के मूल्य का निर्धारण किया है! लेकिन जिस फसल की खरीद सरकारी एजेंसियों के द्वारा की जाती है, उसपर ही किसान को निर्धारित मूल्य मिलता है!
कृषि बिल 2020 क्यों लाया गया
किसानों की आय को दोगुना करने की नियत से और कृषि को बढ़ावा देने के लिए केंद्र की सरकार ने 3 कृषि सुधार बिल सितम्बर में पास किये! लेकिन इस इन तीनों बिलों में कहीं पर भी MSP को लीगलाइज करने या एमएसपी को दर्शाया नहीं गया है! और इसी को लेकर के किसान आशंकित हैं, कि कहीं सरकार एमएसपी व्यवस्था को खत्म तो नहीं करने जा रही है!
लेकिन सरकार का कहना है कि यह तीनों कानून एमएसपी पर कोई असर नहीं डालेंगे !और एमएसपी पहले की तरह से किसानों को मिलती रहेगी!
तो इस बीच जानना जरूरी है, कि लोगों के मन में जो एमएसपी और नये किसान कानून, APMC act को लेकर जो भी संशय है! और एमएसपी क्या होती है? एनएसपी की शुरुआत कैसे हुई? और MSP का फसल पर क्या असर पड़ता है? एसपी को कौन तय करता है? इन सभी बातों को विस्तार से जानने के लिए आप इस लेख में आगे बने रहे हम आपको MSP के बारे में पूरी जानकारी उपलब्ध कराएंगे! सबसे पहले जानते है APMC क्या होता है!
APMC Act क्या है – APMC का फुल फॉर्म
Full form of APMC को जानते है-
A – Agriculture (कृषि)
P – Produce (उपज)
M – Marketing (विपणन)
C – Committee (समिति)
APMC का फुल फॉर्म होता है Agriculture Produce Marketing Committee. APMC का हिंदी मतलब होता है कृषि उपज विपणन समिति, अथवा कृषि उपज बाजार समिति!आजादी के बाद किसानो को उनकी उपज का सही मूल्य दिलाने हेतु 70 के दसक में एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केटिंग (Regulation) ऐक्ट APMC act की स्थापना की गयी और बाजार में कृषि उपज का सही मूल्य दिलाने के लिए छोटी-छोटी विपणन समितियों या मंडियों का निर्माण किया गया!
इस बिल को निर्वहन का कार्य राज्य सरकारों के आधीन किया गया और इसका उद्देश्य यह था की किसानो की फसल को बिचौलियों के द्वारा कम दाम पर खरीद करने से रोकना और बाजार में प्रतिस्पर्धा लाना!
जिससे किसानो को उनकी फसल का मूल्य अच्छा मिले! और किसान को शोषण से मुक्त किया जाये!
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MSP का फुल फॉर्म क्या है (Full form of MSP)
आगे बढ़ने से पहले हम यह जान ले कि MSP ka foll form क्या होता है!
- M – Minimum (न्यूनतम)
- S – Support (समर्थन)
- P – Price (मूल्य)
यानि MSP Full Form Minimum Support Price और MSP का हिंदी न्यूनतम समर्थन मूल्य होता है
MSP क्या है – MSP की शुरुआत कैसे हुई
MSP की शुरुआत का मुख्य कारण अगर कहा जाए कि भारत और चीन के बीच में सन 1962 में हुआ युद्ध मुख्य था तो गलत नहीं होगा! क्योंकि 1962 के युद्ध में देश को चीन के साथ हार का सामना करना पड़ा था!
उस समय देश में किसानों की हालत भी अच्छी नहीं थी, अकाल की वजह से जवान और किसान दोनों परेशान थी इन दोनों में जोश भरने की नियत से तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान जय किसान के नारे को बुलंद किया!
कभी-कभी अगर अनाज की पैदावार कम हुई तो इनके दाम बेतहाशा बढ़ जाते थे और अगर कहीं आना आज का उत्पादन सामान्य से अधिक रहा है तो किसानों को उनका उचित दाम नहीं मिल पाता था तो इन सभी चीजों को ध्यान में रखकर न्यूनतम समर्थन मूल्य के निर्धारण के लिए सरकार ने पहल की और उस समय के कृषि मंत्री चिदंबरम सुब्रमण्यम को इसकी जिम्मेदारी दी गई जिन्होंने इसके लिए सचिव एलके झा को नियुक्त किया!
MSP का इतिहास
MSP यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य इसके बारे में जो इतिहास वह कहता है कि आजादी के लगभग 17 सालों तक किसान की फसल का कोई नाम नहीं था ओने पौने दामों में जो भी फसल होती थी व्यापारी उसे मनमाने ढंग से खरीदा करता था
और इसको लेकर के किसान काफी परेशान रहता था क्योंकि उसके ऊपर में लगने वाली लागत सही कही कम दाम उसको मिलते थे, जिसके कारण उसके लिए आदत नहीं निकल पाती थी!
किसानो ने सरकारके सामने इसको लेकर आंदोलन का रास्ता अपनाया, किसान आंदोलन को देखते हुए उस समय की तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने 1 अगस्त 1964 को एलके झा के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया! जिसका काम यह था कि वह किसान की परेशानी को देखते हुए उसके द्वारा उत्पादित फसलों के दाम को तय करें!
एलके झा के नेतृत्व में बनी समिति ने अपनी रिपोर्ट जब सरकार को सौंपी तो उस रिपोर्ट को आधार बनाकर के सन 1966-67 में पहली बार एमएसपी का ऐलान किया गया!
MSP उस समय केवल एक फसल के लिए यानी गेहूं के लिए निर्धारित की गई और यह व्यवस्था की गई कि फसल की बुवाई से पहले एमएसपी सरकार द्वारा घोषित की जाए!
धीरे धीरे अन्य फसलों जैसे धान तिलहन दलहन आदि पशुओं पर भी सरकार द्वारा एमएसपी निर्धारित की जाने लगी!
और यही क्रम आज तक चल रहा है कि फसल की बुवाई से पहले MSP घोषित कर दी जाती है और सरकार द्वारा निर्धारित एजेंसी के जरिये FCI यानी (FOOD COPORETION OFF INDIA) फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया और नेफेड के द्वारा किसान की फसल को खरीदा जाता है और फिर इन्हें स्टोर्स में रखा जाता है!
फिर इसी खाद्यान्न को सरकार द्वारा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत उपलब्ध कराए जाने वाले राशन में वितरित किया जाता है तथा सरकार आपातकाल में पटने के लिए भी इसका संग्रहण करती है!
कितनी फसलो की MSP तय की जाती है
आज लगभग 23 फसलों पर सरकार द्वारा एमएसपी निर्धारित की जाती है इनमें जो मुख्य फसलें हैं उनमे मुख्य है धान, गेहूं, मक्का, जई, जौ, बाजरा, चना, सोयाबीन, शीशम, सूरजमुखी, चना, मूंग, उड़द, मसूर, सरसों, गन्ना और कपास
न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP तय करने का कारण
एमएसपी के निर्धारण के पीछे मुख्य वजह यही है, कि अगर किसी शहर उत्पादन ज्यादा भी हो जाए तो किसान को उसके द्वारा उत्पादित फसल या अनाज की कीमत सरकार द्वारा निर्धारित मूल्य से कम न मिले! और साथ ही साथ एमएसपी इन मानकों को ध्यान में रखकर निर्धारित की जाती है! कि किसान को उसकी लागत के साथ ही कुछ मुनाफा भी मिल जाए!
एमएसपी का निर्धारण किस प्रकार किया जाता है
सरकार द्वारा एमएसपी को तय करने के लिए कई मानकों को ध्यान में रखा जाता है! उसके लिए आयोग द्वारा आंकड़ों को इकट्ठा करके उस पर विचार विमर्श करने के उपरांत कृषि मूल्य का निर्धारण किया जाता है! इसको तय करने में जो प्रमुख कारक होते हैं!
इसमें देश के अलग-अलग क्षेत्रों से प्रति कुन्तल अनाज को उत्पादन करने में लगने वाली लागत प्रति, हेक्टेयर होने वाला उत्पादन, सरकार द्वारा निर्धारित एजेंसियों स्टोरेज क्षमता और प्रति परिवार होने वाली आनाज की खपत, अंतर्राष्ट्रीय बाजार या विश्व बाजार में अनाज की कीमत, उसकी मांग और उसकी उपलब्धता इन सभी चीजों को ध्यान में रखकर न्यूनतम समर्थन मूल्य का निर्धारण सरकार द्वारा किया जाता है!
एमएसपी को कौन तय करता है
भारत सरकार द्वारा कृषि मंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाला आयोग जिसका नाम कृषि लागत एवं मूल्य आयोग है! जिसे CACP यानी कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइस(Commotion For Agriculture Cost And Price) कहते हैं इस संस्था को 1965 में गठित किया गया था!
जो देश भर में कृषि से सम्बंधित आकडे इकठ्ठा करती है! और एकत्रित आंकडो का अध्ययन कृषि मंत्रालय और आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति द्वारा किया जाता है, जिसके आधार पर MSP का निर्धारण किया जाता है!
गन्ने का समर्थन मूल्य तय करने के लिए सरकार द्वारा एक अलग आयोग का गठन किया गया है! जिसे गन्ना आयोग कहते हैं और गन्ना के न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने में और आंकड़ों को इकट्ठा करने में इसका महत्वपूर्ण योगदान होता है!
किसान क्यों नाराज है
यह सुनने में या पढ़ने में बहुत अच्छा लगता है! कि सरकार द्वारा किसान की फसल का एक निश्चित दाम तय कर दिया गया है!
जिसके नीचे उसकी फसल को खरीदा नहीं जा सकता है! MSP और APMC क्या है लेकिन इसके लिए अभी तक कोई कानून नहीं बना है! कि अगर कोई व्यापारी, बिचौलिया, आढ़ती किसान की फसल को अगर एमएसपी से नीचे खरीदता है! तो उसे किसी भी प्रकार की सजा का प्रावधान हो!
कुछ राज्यों को छोड़ दे जैसे-पंजाब और हरियाणा! तो देश के लगभग सभी राज्यों में एमएसपी का फायदा किसान को नहीं मिलपाता है! और किसान अपनी फसल को न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे और व्यापारी द्वारा मनमाने ढंग से तय किये गए दाम पर बेचना पड़ता है!
एक आंकड़े के मुताबिक लगभग 8% किसान ही अपनी फसल को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेच पाता है! वह भी तब जब सरकारी एजेंसियां खरीद करती हैं, इनमें पंजाब हरियाणा में लगभग MSP पर ही सरकार द्वारा खरीदारी की जाती है!
तो इसी बात को लेकर अन्य राज्यों का किसान आंदोलित है की उसकी फसल का सरकार द्वारा निर्धारित मूल्यों उसे नहीं मिलता!
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निष्कर्ष—-
किसान ही हमारा अन्नदाता है और कितनी परेशानियों को उठाकर वह हमारे खाने के लिए आनाज उत्पन्न करता है! लेकिन यह किसान का दुर्भाग्य ही है! MSP और APMC क्या है यह हमने जाना! दुनिया में सभी उद्योग, व्यापारी, सभी काम करने वाले व्यक्ति जैसे डॉक्टर, वकील, यहाँ तक एक मजदूर अपनी फीस या अपने उत्पाद की कीमत स्वयं तय करते है! लेकिन अपनी छाती को चीरकर खून पसीने को बहाकर लोगो के जीने के लिए जरूरी खाद्यान्न की कीमत दूसरे लोग तय करते है!
क्या कभी ऐसा होगा कि किसान भी अपने उत्पादन को अपने द्वारा तय किये गए मूल्य पर बेचेगा?
हम केवल आशा ही कर सकते है!