‘रहीमदास’ (पूरा नाम अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना) वो नाम जो भारतीय संस्कृति और भारत की अनेकता में एकता तथा सच्चे समाज सुधारक के रूप में अपनी अलग पहचान को प्रदर्शित करता है! रहिमन धागा प्रेम का यह दोहा आज के परिप्रेक्ष में और प्रासंगिक हो जाता है, जब लोग अपने थोड़े से लालच और स्वार्थ हेतु रिश्तो को ठोकर मारने से नहीं घबराते!
आज हम इस लेख के माध्यम से रहीमदास जी के उन अनमोल वचनों के बारे मे जानेंगे जिनको उन्होंने दोहे के रूप में दुनिया को एक ऐसी सौगात प्रदान की जो युगों – युगों तक अपने प्रकाश में भारतीय संस्कृति का पथ प्रदर्शन करते रहेंगे!
रहीमदास के अनमोल दोहे
सारांश सारणी
वैसे तो रहीम दास जी ने बहुत दोहे लिखे है जिनका संकलन रहीम दोहावली अथवा रहीम कविता वली के नाम से मिलती है! उनके कुछ अनमोल दोहे और उनका अर्थ हिंदी में हम यहाँ बताने वाले है!
रहिमन धागा प्रेम (प्यार) का, मत तोरो चटकाय!
जोड़े से फिर ना जुड़े, जुड़े गांठ पड़ जाय!!
व्याख्या :- इस दोहे का भावार्थ है कि कैसी भी कठिन परिस्थिति क्यों न हो कभी भी प्रेम या आत्मीयता रुपी धागे को बिना सोचे समझे झटक (अकस्मात) कर नहीं तोडना चाहिए! क्योकि जैसे धागा टूट जाने पर जुड़ता नहीं है, और अगर जुड़ भी गया तो गांठ जरूर पड़ जाएगी!
अर्थात बिना सोचे किसी भी ऐसे फैसले को तुरंत नहीं लेना चाहिए जिससे रिश्तो में दरार उत्पन्न हो, और अगर एक बार कोई रिश्ता टूट गया तो उसे जोड़ना बहुत कठिन होता है! अगर भविष्य ने उन जख्मो को भर भी दिया तो उनके निसान कभी नहीं मिटेंगे यानि वह गांठ बनी रहेगी!
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय
बिगरी बात न बन सके, लाख करे किन कोय!
जैसे बिगरे दूध का, मथे न माखन होय!!
भावार्थ :- रिश्तो में दरार उत्पन्न करने का काम केवल जबान होती हैइसलिए बहुत संभल कर बोलना चाहिए! इस दोहे का अर्थ है कि कभी भी किसी परिस्थिति को या बात को बिगाड़ना नहीं चाहिए! क्योकि बात बिगड़ जाने पर कोई लाख उपाय करले वो बनती नहीं है! जैसे दूध अगर बिगड़ (फट) गया तो उसे कितना भी माथो उससे माखन नही निकलता!.
ऐसी बनी बोलिए मन का आपा खोय!
औरन को सीतल करे आपहु सीतल होय!!
अर्थ :- ऐसी बात और बोली बोलनी चाहिए जिसमे घमंड बिलकुल न दिखे, क्योकि इस प्रकार की बोली दूसरो तथा खुद को सीतलता प्रदान करती है!
रूठे सुजन मनाइये, जो रूठे सौ बार!
रहिमन फिरि-फिरि पोहिये, टूटे मुक्ताहार!!
अर्थ :- रहीमदास जी कहते है सज्जन व्यक्ति कितनी भी बार रूठे उसे मानते रहना चाहिए इसी में भलाई है! जैसे मोतियों का हार टूट जाने पर बार – बार उसे पो कर तैयार किया जाता है फेंक नहीं दिया जाता!
दुष्ट न छाड़े दुष्टता, कैसेहूँ सुख देत!
धोये हूँ सौ बेर के, काजर होय न सेत!!
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भावार्थ :- इस दोहे का अर्थ है कि दुष्ट व्यक्ति को कोई भी और कितना भी सुख दे दो वह अपनी दुष्टता से बाज नहीं आता है! जैसे काजल को कितना भी धो डालो वह सफ़ेद नहीं हो जाता!
तो दोस्तों रहिमन धागा प्रेम का से सम्बंधित और रिश्तो को कैसे निभाए इससे सम्बंधित दोहे पढ़कर आपको कैसा लगा अगर आपको रहीमदास जी से सम्बंधित कोई और जानकारी चाहिए कमेन्ट सेक्शन में जाकर पूछ सकते है!