Carbon Capture Technology को CCS कहा जाता है, जिसका फुल फॉर्म होता है! ‘Carbon Capture and Storage‘ यह एक नयी प्रकार की तकनीक है, जिसका कम Global Warming और Clemet Change को कम करने में महत्त्व पूर्ण योगदान करना है! कार्बन कैप्चर टेक्नोलॉजी क्या है, क्या यह धरती के लिए वरदान साबित हो सकती है? और इसका उपयोग कौन से देश कर रहे है?
दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति एलोन मस्क [ Elon Musk ] जोकि Tesla Inc के चीफ है, ने कार्बन कैप्चर टेक्नोलॉजी पर के विकास और विस्तार हेतु Elon Musk ने 100 मिलियन डॉलर (करीब 720 करोड़ भारतीय रुपये) खर्च करने का ऐलान किया है! Elon Musk हमेशा नयी टेक्नोलॉजी के पक्षधर रहे है! और उसको बढ़ाने और विकास हेतु अपना महत्वपूर्ण योगदान देते रहे है! उन्होंने अपने Twitter पर एक पोस्ट के माध्यम से बताया कि Carbon Capture Technology की खोज करने वाले व्यक्ति को 720 करोड़ का इनाम भी दिया जायेगा!
Am donating $100M towards a prize for best carbon capture technology
— Elon Musk (@elonmusk) January 21, 2021
क्या है कार्बन कैप्चर टेक्नोलॉजी,और यह कैसे कार्य करती है?
सारांश सारणी
Carbon Capture and Storage [CCS] इस तकनीक का मुख्य उद्देश्य है कार्बन डाई आक्साइड को पकड़ कर स्टोर करना होता है!
कार्बन कैप्चर टेक्नोलॉजी के माध्यम से इसके उत्सर्जन स्रोत (औद्योगिक फैक्ट्री,पॉवर प्लांट आदि की चिमनी) पर सालवेंट फिल्टर द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड फंसाकर( Capture ) करके किसी दुसरे स्थान भण्डारण हेतु ले जाना है! जिसमे मुख्यतः गहरे भूमिगत भण्डारण का उपयोग किया जाये! इस तकनीक के इस्तेमाल से कार्बन डाइऑक्साइड द्वारा वातावरण को होने वाले नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है. जिससे वातावरण में होने वाले आकस्मिक बदलाव को रोका जा सके!
इस टेक्नोलॉजी क्रियान्वयन में कई तकनीकि और उससे सम्बंधित विशेषज्ञों का इस्तेमाल किया जाता है जिसमे मुख्यतः कार्बन को कैप्चर करने की तकनीक, इसे दूसरी जगह ले जाने में इस्तेमाल होने वाली तथा भूमिगत स्टोर करने हेतु इसके विशेषज्ञ की सलाह भी सामिल है!
इस तकनीक को मुख्यतः कैप्चर टेक्नोलॉजी के रूप में जाना जाता है! परन्तु यह इससे कही ज्यादा व्यापक और जटिल प्रक्रिया का एक हिस्सा है! कैप्चर किये गए कार्बन गैस को पाईप लाइन और शिपिंग के माध्यम से उपयुक्त भूगर्भीय भंडारण स्थानों जैसे तेल और गैस के भूमिगत क्षेत्र, गहरे खारे जल ने स्थान और अनुपयोगी कोयले की खदानों में ले जाया जाता है!
टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल का तरीका
इस टेक्नोलॉजी को मुख्या रूप से तीन तरीको से इसतेमाल किया जाता है-
- ईधन के जलने से पहले इस्तेमाल किये जाने वाले प्राइमरी ईंधन को भाप और वायु या ऑक्सीजन के साथ प्रतिक्रिया दी जाती है, और इसे कार्बन मोनोऑक्साइड और हाइड्रोजन के मिश्रण में बदल दिया जाता है, जिसे ‘सिंटास’ कहा जाता है। इस कार्बन मोनोऑक्साइड मिश्रण को रिएक्टर में डालकर कार्बन डाई आक्साइड में बदल दिया जाता है! जब बिजली संयंत्र हाइड्रोजन के उपयोग से गर्मी उत्पन्न करने लगते है तब कार्बनडाई आक्साइड को अलग करने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाती है!
- ईधन जलने के बाद इसमें निकलने कार्बनडाई आक्साइड को पकड़ने के लिए एक विलायक का उपयोग किया जाता है! यह तकनीक मुख्य रूप से कोयले और गैस से चलने वाले संयंत्रो के लिए उपयुक्त मानी जाती है!
- इस प्रक्रिया में ईंधन को हवा के बजाय ऑक्सीजन में दहन किया जाता है, जो मुख्य रूप से जल वाष्प की एक गैस बनाता है! फिर ग्रिप गैस को जल वाष्प को गाढ़ा करने के लिए ठंडा किया जाता है, जो कार्बनडाई आक्साइड को छोड़ देता है!
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भण्डारण हेतु स्थान और उनकी विशेषता
जब कार्बनडाई आक्साइड को कैप्चर कर लिया जाता है तो उसे उपयुक्त भंडारण स्थान पर ले जाना आवश्यकहोता है! और कार्बनडाई आक्साइड को ले जाने की प्रक्रिया बहुत सावधानी पूर्वक की जाती है! जिस भी परिवहन से इसे लेजाया जाये उसका 7.4 एमपीए से ऊपर दबाव नहीं होना चाहिए और 31˚C से ऊपर तापमान होना चाहिए!
इसे भण्डारण हेतु उन स्थानों का चयन किया जाता है जिनकी गहराई कम से कम 800 मीटर हो! ऐसा होने पर भूजल के दूषित होने की सम्भावना कम हो जाती है! इसके लिए गैस निकालने वाले गहरे कुओ को सबसे उपयुक्त माना जाता है!
वैश्विक सम्भावनाये
Carbon Capture Technology का अभी इस्तेमाल काफी जटिल और यह Technology आज के समय में महँगी है! जिसका इस्तेमाल करना सभी देशो के लिए संभव नहीं है! परन्तु जैसे – जैसे यह तकनीक विकसित होती रहेगी और इसका इस्तेमाल बढेगा हम आशा करते है कि सभी देशो के लिए यह उपलब्ध होगी!
कार्बन कैप्चर टेक्नोलॉजी क्या है अभी इस तकनीक के स्थान पर जैविक ईंधन का उपयोग बेहतर है क्योकि इससे कार्बन उत्सर्जन को काफी हद तक कम किया जा सकता है!